सोमवार, 10 जून 2013

शायर

दिल के दर्द को आँखों के रास्ते निकल जाने दो 
मेरे गम को आंसुओं के साथ ही बह जाने दो 

क्या शिकवा और शिकायत है खुल कर जरा कहो 
दिल की कोई बात दिल में ही न रह जाने दो 

तुम साथ हो तो शराब की जरूरत भला क्या है
हमारी रात कभी ऐसे भी ढल जाने दो 

आओ दिलों की दूरियां मिटा दें कुछ इस तरह 
सीने से लगा लो हमें बांहों में सिमट जाने दो 

खुद पर यकीन है तुम्हें पा कर ही रहेंगे 
तकदीर को छोड़ो हमे खुद को आजमाने दो 

मेरी खुशबू से महके तेरे घर का हर कोना 
अपने आँगन में मुझे पत्तों सा बिखर जाने दो 

जो कहना था इस गजल में वो हमने कह दिया 
यहाँ और भी शायर हैं कुछ उनको भी सुनाने दो 

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