शुक्रवार, 26 मई 2017

तेरी बेरुखी

तेरी बेरुखी तेरा मुस्कुराना याद रहेगा
हम हों कहीं भी तेरा ठिकाना याद रहेगा
गुजरे हम उस गली से तेरे दीदार को जब भी
तेरा वो झलक दे के चुप जाना याद रहेगा
करते हो मेरी महफ़िल में तुम बात गैर की
यूं मेरे दिल को जलाना याद रहेगा
हम मुसलमां थे मगर काफिर बने तेरे लिए
सज़दे कर के भी तुझ को ना पाना याद रहेगा
मिलेंगे तुम्हे और भी चाहने वाले मगर
ज़िंदगी भर तुम्हे ये दीवाना याद रहेगा 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें