गुरुवार, 30 मई 2013

काफ़िर

वो सबसे अलग सबसे जुदा सा लगता है
मुस्कुराता है मगर गमजदा  सा लगता है
              
पूछो जरा कोई क्या है खता मेरी
कहता कुछ भी नहीं पर मुझ से खफा सा लगता है

जाने क्या बात है मेरे दुश्मन तुझ में
दुश्मनी लाख सही दिल तुझ पे फ़िदा सा लगता है

मेरी खामोश जिन्दगी में यूँ  आना तेरा
गमो की धूप में ठंडी हवा सा लगता है

करूँ सजदे किस को बता ऐ दुनिया
है वो काफ़िर मगर हम को खुदा सा लगता है

मुझ से हर बात वो इस अदा से कहता है
उसका हर लफ्ज मुझ को दुआ सा लगता है

कलाम तेरा है या किसी और का बता ऐ शायर
लिखा जो तूने अभी क्यों हम को पढ़ा सा लगता है




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