बुधवार, 12 जून 2013

सहारा

लोग क्यों दिल को दुखाने की बात करते हैं
दे कर सहारा फिर से छोड़ जाने की बात करते हैं

करते थे कोशिश जो  कभी  हंसाने की हमको
आज क्यों हमको वो रुलाने की बात करते हैं

शिकवा है उनसे हमको इस बात का फ़क़त
हम सिर्फ उनकी और वो ज़माने की बात करते हैं

जो कभी इन आँखों को कहते थे पैमाना
आज वो किसी दूसरे मयखाने की बात करते हैं



सोमवार, 10 जून 2013

शायर

दिल के दर्द को आँखों के रास्ते निकल जाने दो 
मेरे गम को आंसुओं के साथ ही बह जाने दो 

क्या शिकवा और शिकायत है खुल कर जरा कहो 
दिल की कोई बात दिल में ही न रह जाने दो 

तुम साथ हो तो शराब की जरूरत भला क्या है
हमारी रात कभी ऐसे भी ढल जाने दो 

आओ दिलों की दूरियां मिटा दें कुछ इस तरह 
सीने से लगा लो हमें बांहों में सिमट जाने दो 

खुद पर यकीन है तुम्हें पा कर ही रहेंगे 
तकदीर को छोड़ो हमे खुद को आजमाने दो 

मेरी खुशबू से महके तेरे घर का हर कोना 
अपने आँगन में मुझे पत्तों सा बिखर जाने दो 

जो कहना था इस गजल में वो हमने कह दिया 
यहाँ और भी शायर हैं कुछ उनको भी सुनाने दो 

सुनहरा ख्वाब

दिल का पता नहीं पर वो निगाहों में मुझे रखता है 
मेरा हमसफ़र नहीं मगर अपनी राहों में मुझे रखता है 

                               उसकी किसी दुआ में शामिल नहीं हूँ मै 
                               वो दिल से निकलने वाली आहों में मुझे रखता है 

जाऊं कहाँ मै आसरा मांगू किस से 
वो भी कहाँ अपनी पनाहों में मुझे रखता है 

                                हमारे दरमियाँ इक अजब सी दूरी है 
                                वो रहता है जमीं पर , सितारों में मुझे रखता है 

आँखें हैं ग़मगीन वो सुनहरा ख्वाब क्यों टूटा 
कि बड़े नाज़ से वो अपनी बांहों में मुझे रखता है 

शनिवार, 8 जून 2013

जिन्दगी

ओस की बूँदें पलकों में जमी सी हैं
खामोश निगाहों में कुछ नमी सी है

सूना सूना है दिल का हर कोना
लगता है जिन्दगी में कुछ कमी सी है

ता उम्र उसे मैंने ढूँढा  बहुत मगर
जिन्दगी खो गई कहीं , कहीं गुमी सी है

ना कह पाए हम ना सुन पाया वो
बात कोई अब भी दिल में दबी सी है


                      

बुधवार, 5 जून 2013

नुमाइश

देखें मुझ से मिलने के तलबगार कितने हैं
कितने हैं दुश्मन मेरे और मेरे यार कितने हैं

राह में उसकी कब से बिछा राखी है आँखें
जाने मेरी किस्मत में इंतजार कितने हैं

सरे राह इस भीड़ में मेरी नुमाइश है
अंदाजा नहीं मुझे की खरीदार कितने हैं

नसीब में लिखा था इस दयार  तक आना
अपनी ही निगाहों में हम शर्मसार कितने हैं


रविवार, 2 जून 2013

हिजाब

कुछ गम तो कुछ ख़ुशी हैं जिन्दगी के हिसाब में
मै भी चुप हूँ उसकी ख़ामोशी के जवाब में

हकीकत में वो गैर है ये जानती हूँ मै
लगता है क्यों वो अपना जब आता है ख्वाब में

क्यों मेरे जज्बातों को पढ़ नहीं पाता
नाम जिसका लिखा है दिल की किताब में

खुद करे वो दिन भी आये जिन्दगी में
तरसे वो दीदार को और मै निकलूँ हिजाब में