रविवार, 2 जून 2013

हिजाब

कुछ गम तो कुछ ख़ुशी हैं जिन्दगी के हिसाब में
मै भी चुप हूँ उसकी ख़ामोशी के जवाब में

हकीकत में वो गैर है ये जानती हूँ मै
लगता है क्यों वो अपना जब आता है ख्वाब में

क्यों मेरे जज्बातों को पढ़ नहीं पाता
नाम जिसका लिखा है दिल की किताब में

खुद करे वो दिन भी आये जिन्दगी में
तरसे वो दीदार को और मै निकलूँ हिजाब में



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